Tuesday, July 20, 2010

वरचा मजला आणि प्रतिप्रश्न

इतिहास किसी भाषा का नाम नहीं,
और न ही किसी उदात्त मानवी संबंध का नाम।
वो तो शक्ति के लिए किया गया नितांत अमानुष रक्तस्नान है।

समर्पण का एक ऐसा विचार फूल वनस्पती कि स्वाहा वाणी है।
प्रार्थना मनुष्यकी -
इसलिए प्रतिइतिहास हो जानेका नाम नहीं,
बल्की इतिहाससे सर्वथा उदासीन होकर वनस्पती हो जानेका नाम प्रार्थना है।

समुद्र जब आकाश के प्रति आकर्षित होता है
तो प्रतिआकाश नहीं - मेघ बनना होता है।

सूर्य जब पृथ्वी के लिए आकुल होता है
तब प्रतिपृथ्वी नहीं धूप बनना होता है।

पर्वत जब यात्रा के लिए व्याकुल होता है
तो प्रतियात्रा नहीं नदी बनना होता है।

येह मेघ यह धूप ये नदीयां इतिहास नहीं - प्रार्थनाएं है।

इतिहास का उत्तर प्रतिइतिहास कभी नहीं होता -
क्योंकी दोनों भी एक दूसरेकी तलाश है!

एक प्रश्न है - तो दूसरा केवल प्रतिप्रश्न।

उत्तर ही नहीं....


- नरेश मेहता.

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मकांकी ऊपरी मंझिलपर अब कोई नहीं रेहता
वो कमरे बंद है कबसे
जो चौबीस सीढियॉं उनतक पहोंचती थी वो अब ऊपर नहीं जाती
मकानकी ऊपरी मंझिलपर अब कोई नहीं रेहता

वहॉं कमरोंमें इतना याद है मुझको
खिलौने इक पुरानी टोकरीमें भरके रखें थे
बहोतसे तो उठाने फेंकने रखनेंमें चूर हो गये

वहॉं इक बाल्कनी भी थी
जहॉं एक बैदका झूला लटकता था
मेरा एक दोस्त था तोता
वोह रोज आता था
उसको हरीं मिर्च खिलाता था

उसी के सामने छत थी
जहॉं एक मोर बैठा आसमांपे रातभर मीठे सितारें चुगता रेहता था

मेरे बच्चोंने वोह देखा नहीं है
वो नीचे कि मंझील पर रेहतें है
जहॉंपर पिआनो रखा है पुराने पारसी स्टाईल का - फ्रेजरसे खरीदा था
मगर कुछ बेसुरी आवाजें करता है
कि उसरी रीढ्स सारी हिल गयी है
सुरोंके उपर दुसरें सुर चढ गएं है

उसी मंझिलपे एक पुश्तैनी बैठक थी
जहॉं पुरखोंकी तस्वीरें लटकती थी
मै सीधा करता रेहता था - हवॉं फिर टेढा कर जाती थी
बहूको मूछोंवाले सारे पुरखे क्लिशे लगते थे
मेरे बच्चोंने आखिर उनको कीलोंसे उतारा
पुराने न्युजपेपरमें उनको मेहफूज करके रख दिया था
मेरा भांजा कभी ले जाता है
फिल्मोंमें कभी सेट पे लगाता है
किराया मिलता है उनसे

मेरी मंझिलपे मेरे सामने मेहमॉंखाना है
मेरे पोते कभी अमरिकासे आएं तो रुकते है
अलग साइझमें आते है वो जितनी बार आतें हैं
खुदा जाने वहीं आते हैं या हर बार कोई दूसरा आता हैं...

वो इक कमरा जो पीछेकी तरफ बंद है जहां बत्ती नहीं जलती
वहां एक रोजरी रखी है
वो उससे मेहेकता है
वहां वो दाई रेहती थी जिसने तीनों बच्चोंको बडा करने अपनी उम्र दे दी थीं
मरी तो मैने दफनाया नहीं
मेहफूज करके रख दिया उसको

उसके बाद दो सीढियॉं है - नीचे तेहखानेंमें जाती है
जहॉं खामोशी रोशन है,
सुकुन सोया हुआ है बस इतनीसे पेहलुंमें जगह रखकर
कि मै सीढियोंसे उतरकर नीचें आऊं तो उसीके पहलुंमें बाजु रखकर गले लग जाऊं - सो जाऊं

मकान कि उपरी मंझिलपर अब कोई नहीं रेहता.


- गुलझार.

"अशा ओवाळल्या न ओवाळल्या सत्तर मैलाच्या सोबतीस"
जागरण फार - झोप आवश्यक.